आलीराजपुर मे सिविल सर्जन सोनाने नियमों को ताक मैं रख कर घर से चला रहे सोनोग्राफी सेंटर अफसरों की नहीं पड़ रही नजर।


डॉ.उमेशचंद्र शर्मा(प्रधान संपादक)
निरंजन भारद्वाज(संपादक)

पैसे की लालच मे अस्पताल मे कम और घर पर ज्यादा कर रहे सोनोग्राफी 

आलीराजपुर[ मनीष अरोडा अरण्यपथ न्यूज] आलीराजपुर मध्य प्रदेश की शिवराज सरकार स्वास्थ्य सुविधाओं को लेकर चाहे लाख दावे करें मगर उसकी जमीनी हकीकत कुछ और ही है सरकार गर्भवती महिलाओं को उचित स्वास्थ्य सुविधा एवं जरूरी जांच और सोनोग्राफी निशुल्क करने के दावे करती है मगर मध्य प्रदेश के आदिवासी बहुल जिले अलीराजपुर के जिला अस्पताल मैं सोनोग्राफी कराने के लिए गर्भवती महिलाओं को लंबी कतारों में लगना पड़ता है अस्पताल में एक सोनोग्राफी मशीन होने के कारण दिन भर महिलाओं को भूखे प्यासे लाइन में खड़ा रहना पड़ता है नंबर आने के बाद गर्भवती महिलाओं की सोनोग्राफी की जाती है और जो गर्भवती महिलाएं सोनोग्राफी कराने से बच जाती है उन्हें डॉक्टर सोनाने द्वारा अपने निजी सोनोग्राफी सेंटर पर बुलाकर उनकी सोनोग्राफी की जाती है वह भी मोटी रकम वसूल कर आपको यहां बता दे की डॉक्टर सोनोने जिला अस्पताल में सिविल सर्जन के पद पर वर्तमान में पदस्थ हैं नियम के अनुसार सिविल सर्जन को सुबह 8:00 से लेकर 1:00 बजे तक और दोपहर 3:00 बजे से लेकर शाम के 6:00 बजे तक अस्पताल में अपनी सेवाएं देना होती है मगर डॉक्टर सोनोने 1:00 बजे के बाद अपने घर पर सोनोग्राफी करते हैं यह डॉक्टर सरकार का एक-एक लाख वेतन उठा रहे हैं वहीं अपने घर में खुलेआम दुकानदारी भी चला रहे हैं। इससे नर्सिंग होम एक्ट की खुलेआम धज्जियां उड़ाई जा रही है। जबकि सरकार का स्पष्ट निर्देश है कि कोई भी सरकारी डॉक्टर इस तरह के न तो सोनोग्राफी सेंटर चला सकते हैं और न ही अस्पताल चलाने उन्हें अनुमति है चिकित्सा की दुकानदारी को खत्म करने सरकार ने तीन साल पहले कड़े नियम बनाए हैं। जिसमें नर्सिंग होम एक्ट के तहत कोई भी डॉक्टर एक्ट के नियम से दूर जाकर न तो नर्सिंग होम चला सकते। नियम को तोड़कर दुकान चलाने वालों पर न केवल कड़ी कार्रवाई बल्कि सजा का भी प्रावधान है, लेकिन कलेक्टर के नाक के नीचे ही इस तरह का कारोबार धड़ल्ले से चल रहा है।कुछ लोगों ने मामले की शिकायत पुर्व मे कलेक्टर से की भी है,कलेक्टर ने ऐसे डॉक्टरों को मीटिंग में स्पष्ट चेतावनी भी दी थी,लेकिन उनके आदेश के बाद भी डॉक्टरों की दुकान धड़ल्ले से चल रही है।

अस्पताल छोड़, क्लीनिक में दे रहे समय

नर्सिंग होम एक्ट के नियमों का पालन नहीं करने वाले डॉक्टरों की सबसे बड़ी लापरवाही तब उजागर होती है, जब जिला अस्पताल में सेवा दे रहे डॉक्टर अधिकतर समय अपने क्लीनिक में रहते हैं। वहीं जिला अस्पताल के मरीज बिना डॉक्टर के भटकते रहते हैं। जबकि सरकार अस्पताल में सेवा देने के लिए बकायदा ९० हजार रुपए से सवा लाख रुपए डॉक्टरों को वेतन देती है। इसके बाद भी डॉक्टरों को सरकार के इतने पैसे से संतुष्टि नहीं मिलती।

सोनो ग्राफी के लिए महिलाओ को जिला अस्पताल मे घंटों लगानी पड़ती है लाइन,घर पर भेजकर वसूली जाती मोटी रकम।

गर्भवती महिलाओं की जांच के लिए सरकारी अस्पताल में पर्याप्त सुविधाएं नहीं हैं।जिला महिला अस्पताल में प्रतिदिन ओपीडी में आने वालीं करीब 300 महिलाओं को सीधे सोनोग्राफी कराने की सलाह दी जाती है। इसे कराने के लिए महिलाओं सोनोग्राफी रुम के बाहर घंटों लाइन लगाकर इंतजार करना पड़ता है। अपना नंबर नही आने पर लाइन लगाने तक तो ठीक उनसे मुंह मांगी कीमत वसूल की जाती है इसके बाद भी बिना किसी रेडियोलॉजिस्ट के रिपोर्ट तैयार की जाती है।एक मात्र जिला अस्पताल है। इसमें मात्र एक सोनोग्राफी की मशीन लगी है। वह भी किसी दिन खुलती तो किसी दिन बंद रहती है। लेकिन गर्भवती महिलाओं की प्रतिदिन भीड़ रहती है।आपात काल से लेकर सामान्य दिनों में करीब 300 महिलाएं ओपीडी में दिखाने आती हैं। डॉक्टरों की सलाह पर उन्हें हर बार सोनोग्राफी करानी होती है। जिला अस्पताल में करीब 100 महिलाओं की ही सोनोग्राफी हो पाती है, जबकि अन्य को निजी सोनोग्राफी सेंटर पर जाना पढता है।

रहें हर खबर से अपडेट अरण्यपथ न्यूज़ के साथ

ख़बर पर आपकी राय