आजाद हमेशा आजाद ही रहेंगे जयंती पर विशेष


डॉ.उमेशचंद्र शर्मा(प्रधान संपादक)



निरंजन भारद्वाज
   संपादकीय

आजाद हमेशा आजाद ही रहेंगे जयंती पर विशेष

भारत को अंग्रेजों की गुलामी से आजाद कराने में अनेकों शूरवीरो तथा क्रांतिकारियों का योगदान है।उन्होंने इस देश की आजादी के लिए अपने प्राण न्योछावर कर दिए।ऐसे ही क्रांतिकारियों में अमर शहीद चंद्रशेखर आजाद का नाम बड़े सम्मान के साथ लिया जाता है इनका जन्म मध्यप्रदेश के अलीराजपुर जिले के भाबरा में 23 जुलाई 1906 को हुआ था उनके पिता का नाम पं सीताराम तिवारी था माता का नाम श्रीमती जगरानी देवी था।आपके पिता पं सीताराम तिवारी उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिला बदर गांव के रहने वाले थे भीषण अकाल के चलते आप मध्य प्रदेश के अलीराजपुर गांव भाबरा में जा बसे।चंद्रशेखर का प्रारंभिक जीवन आदिवासी अंचल के क्षेत्र भाबरा में बीता चंद्रशेखर ने बचपन में भील बालको के साथ तीर कमान चलाएं इस प्रकार निशानेबाजी उन्होंने बचपन में ही सीख ली थी। चंद्रशेखर बचपन में महात्मा गांधी से प्रभावित थे माता जगरानी देवी से काशी में संस्कृत पढ़ने की आज्ञा लेकर घर से निकले। दिसंबर 1921 गांधी जी के असहयोग आंदोलन का आरंभिक दौर था उस समय 14 वर्ष की बाल आयु में चंद्रशेखर ने इस आंदोलन में भाग लिया। चंद्रशेखर गिरफ्तार कर लिए गए और उन्हें मजिस्ट्रेट के समक्ष उपस्थित किया गया। चंद्रशेखर से उनका नाम पूछा गया तो उन्होंने अपना नाम आजाद पिता का नाम स्वतंत्रता और घर का जेलखाना बताया उन्हें अल्पायु के कारण कारागार का दंड ना देकर 15 कोड़ों की सजा हुई। हर कोड़े की मार पर"वंदे मातरम"और महात्मा गांधी की जय बोलते रहे। चंद्रशेखर सीताराम तिवारी को इस घटना के बाद सार्वजनिक रूप से चंद्रशेखर आजाद कहा जाने लगा। 
चंद्रशेखर आजाद का क्रांतिवीर जीवन
1922 में गांधी जी द्वारा असहयोग आंदोलन को स्थगित कर दिया गया। इससे आजाद बहुत आहत हुए, उन्होंने देश को स्वतंत्र करवाने की मन में ही ठान ली। एक युवा क्रांतिकारी ने उन्हें हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन क्रांतिकारी दल के स्थापक रामप्रसाद बिस्मिल से परिचित करवाया। आजाद बिस्मिल से बहुत प्रभावित हुए। आजाद के समर्पण और निष्ठा की पहचान करने के बाद बिस्मिल ने आजाद को अपनी संस्था का सक्रिय सदस्य बना लिया।आजाद अपने साथियों के साथ संस्था के लिए धन एकत्रित करते थे।अधिकतर यह धन अंग्रेज सरकार से लूट कर एकत्रित किया जाता था। 1925 में हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन की स्थापना की गई थी।  1925 में काकोरी कांड के फल स्वरूप अशफाक उल्ला ख़ां रामप्रसाद बिस्मिल सहित कई अन्य मुख्य क्रांतिकारियों को मृत्युदंड दिया गया थाा,  इसके बाद चंद्रशेखर ने इस संस्था का पुनर्गठन किया। भगवती चरण वोहरा के संपर्क में आने के पश्चात चंद्रशेखर आजाद,भगत सिंह सुखदेव,राजगुरु के भी निकट आ गए। भगत सिंह के साथ मिलकर चंद्रशेखर आजाद ने अंग्रेजी हुकूमत को भयभीत करने और भारत से खदेड़ने का हर संभव प्रयास किया। 
चंद्रशेखर आजाद का आत्म बलिदान  
फरवरी 1931 में जब आजाद गणेश शंकर विद्यार्थी से मिलने सीतापुर जेल गए तो विद्यार्थी ने उन्हें इलाहाबाद जाकर जवाहरलाल नेहरू से मिलने को कहा। आजाद जब नेहरू से मिलने आनंद भवन गए तो उन्होंने आजाद की बात सुनने से भी इनकार कर दिया।गुस्से में वहां से निकल कर आजाद अपने साथी सुखदेव राजगुरु के साथ एलफ्रेंड पार्क चले गए। वे सुखदेव के साथ आगामी योजनाओं के विषय पर विचार विमर्श कर ही रहे थे कि अंग्रेज पुलिस ने ने उन्हें घेर लिया। आजाद ने अपनी जेब से पिस्तौल निकालकर गोलियां दागनी शुरू कर दी।आजाद ने सुखदेव को तो भगा दिया।पर स्वयं अंग्रेजों का अकेले ही सामना करते रहे।दोनों ओर से गोलीबारी हुई लेकिन जब  आजाद के पास मात्र एक ही गोली बची तो उन्हें पुलिस का सामना करना मुश्किल लगा आजाद ने यह प्रण लिया हुआ था   कि वह कभी भी जीवित पुलिस के हाथ नहीं आएंगे इसी   प्रण को निभाते हुए एलफ्रेंड पार्क में 27 फरवरी 1931 को उन्होंने वह बची हुई एक गोली स्वयं पर दाग के आत्म बलिदान कर लिया। ऐसे हमारे देश के माटी के लाल अमर शहीद चंद्रशेखर आजाद  को कोटि-कोटि शत-शत नमन।

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