सीएम साहब आखिर कब सुधरेंगे आलीराजपुर जिला अस्पताल के हालात


डॉ.उमेशचंद्र शर्मा(प्रधान संपादक)
निरंजन भारद्वाज(संपादक)


सीएम साहब आखिर कब सुधरेंगे आलीराजपुर जिला अस्पताल के हालात

प्रेगनेंट महिला के साथ रात मे कुछ अनहोनी या घटना हो जाती तो कोन होता जिम्मेदार।

जिला अस्पताल मे डिलेवरी कराने आई महिला ओर उसके परिजनों को स्टाफ नर्स और ड्युटी डाक्टर ने भगाया।

सिविल सर्जन सोनाने को सोनोग्राफी से फुर्सत नहीं जिला अस्पताल चल रहा भगवान भरोसे।


आलीराजपुर [ मनीष अरोडा अरण्यपथ न्यूज] 
मध्य प्रदेश की शिवराज सिंह चौहान की सरकार स्वास्थ्य सुविधाओं को लेकर चाहे लाख दावे करें मगर उस की जमीनी हकीकत कुछ और ही है।ताजा मामला आदिवासी बाहुल्य जिले अलीराजपुर का है जहां पर जिले के जोबट क्षेत्र के प्रतापगढ़ की एक ग्रामीण महिला को डिलेवरी कराने के लिए परिजन जिला अस्पताल लेकर आए जहां जिला अस्पताल मैं ड्युटी डाक्टर ओर स्टाफ नर्स के द्वारा मरीज ओर उसके परिजनों को डाट फटकार लगाई जिससे परिजन नाराज होगये ओर उस गर्भवती महिला को रात को 11 बजे बिना डिलेवरी कराये अस्पताल से ले जाने लगे।तभी आदिवासी समाज के सामाजिक कार्यकर्ता अरविंद कनेश ओर दिलीप पटेल जिला अस्पताल पहुंचे।और परिजनों को समझाया जिसके बाद परिजन महिला को अस्पताल के अंदर ले गए डिलीवरी वार्ड में ले जाने के बाद महिला की हालत को देखते हुए डॉक्टर ने उसे गुजरात के झबबू गांव रेफर कर दिया।अगर जिला अस्पताल से लेजाते समय रास्ते मे गर्भवती महिला या बच्चे के साथ कुछ अनहोनी हो जाती तो उसका जिम्मेदार कौन होता यह बड़ा सवाल है आपको यहां बता दें कि अलीराजपुर जिला अस्पताल में सिविल सर्जन सोनाने सिर्फ सोनोग्राफी करने मे ध्यान देते हैं वह भी अपने निजी आवास पर जिला अस्पताल पर उनका कोई ध्यान नहीं है जिला अस्पताल में सिविल सर्जन कार्यालय बहुत कम खुलता है यहां पर हालात इतने दयनीय है कि सुविधाएं सारी है लेकिन डॉक्टर और नर्स के व्यवहार ठीक नहीं है रात में जब कोई मरीज जिला अस्पताल में जाता है तो उसके साथ डॉक्टर और नर्स का व्यवहार ठीक नहीं रहता डॉक्टर और नर्स को यह मालूम होना चाहिए कि जिस काम की उनको तनख्वाह मिलती है वह सारा पैसा आम जनता का है अगर अस्पताल में जाते हैं तो ओपीडी से लेकर जांच सोनोग्राफी के पैसे लिए जाते हैं ओर दवाई तो बाहर की लेना पढ़ती है।फिर भी डाक्टरों के द्वारा मरीज ओर परिजनों को अपमानित होना पड़ता है।ये सब सिविल सर्जन की लापरवाही ओर उनका अस्पताल पर ध्यान नहीं देने का नतीजा है।जबकि सिविल सर्जन का काम पुरे अस्पताल की देखरेख और सुविधाओं को देखने की है लेकिन यहां तो सिविल सर्जन साहब ने पुरे जिला अस्पताल को भगवान भरोसे छोड़ रखा है।रात में इमरजेंसी होने पर सिर्फ एक डाक्टर अस्पताल में मिलता है वो भी महिला वार्ड ओर मेल वार्ड दोनों को देखता है।अगर कोई मरीज ज्यादा बिमार हो तो वो डाक्टर के आते आते ही निकलले।रात मे तो इमरजेंसी में दवाईयां भी नहीं मिलती मजबुरी में बाहर से दवाई लाना पड़ती है जबकी सरकार ने जिला अस्पतालों में सारी दवाएं और जांचें फ्री में उपलब्ध कराने कै आदेश दिये है।लेकिन जिम्मेदार अधिकारी ही तनखा अस्पताल की लेते हैं और काम अपने निजी क्लीनिक पर करते हैं।यहां आपको बताते चलें जिला अस्पताल में पदस्थ सारे डॉक्टरों का मेडिकल संचालकों से गठजोड़ है।डाक्टर उसी मेडिकल पर मरीज के परिजनों को दवाई लेने भेजते हैं जहां उनका कमीशन बंधा होता है।बकायदा उस मेडीकल दुकान की पर्ची भी डाक्टरों के पास उपलब्ध होती है।जिसपर मेडिकल का नाम ओर पता होता है।यहां एक बात समझ में नहीं आ रही के सरकार जब जिला अस्पताल में सारी दवाएं उपलब्ध होने के दावे करती हैं तो ये दवाईयां जाती कहां है।

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