संसद भवन आयोजन का राजनीतिकरण किए जाने का प्रयास निंदनीय-मिलिंद परांडे


डॉ.उमेशचंद्र शर्मा(प्रधान संपादक)
निरंजन भारद्वाज(संपादक)


नई दिल्ली (अरण्यपथ न्यूज नेटवर्क) 

संसद भवन आयोजन का राजनीतिकरण किए जाने का प्रयास निंदनीय-मिलिंद परांडे  

विश्व हिंदू परिषद संसद भवन आयोजन को राष्ट्र का गौरव मानती है, क्योंकि इसने इस राष्ट्र की ऐतिहासिक, पवित्र संस्कृति और परंपरा को उजागर किया है,किन्तु कुछ राष्ट्र विरोधी और हिंदू विरोधी ताकतों द्वारा राजनीतिक लाभ के लिए इस घटना का राजनीतिकरण करने का प्रयास किया गया है,जो कि निंदनीय हैं। उक्त विचार विश्व हिंदू परिषद के राष्ट्रीय महासचिव मिलिंद परांडे द्वारा एक वक्तव्य में व्यक्त किए गए हैं।विहिप के राष्ट्रीय प्रवक्ता विनोद बंसल द्वारा जारी किया गए वक्तव्य की प्रति अरण्यपथ न्यूज को दी गई है,जिसमें विहिप महासचिव द्वारा कुछ राजनीतिक दलों द्वारा आयोजन का कथित रूप से राजनीतिकरण किए जाने के प्रयासों की निंदा की गई है।वक्तव्य में विहिप महासचिव मिलिंद परांडे ने कहा कि नए संसद भवन का उद्घाटन भारत के लोगों की अंतर्निहित एकता,परंपरा,संस्कृति, जीवन मूल्यों को दर्शाता एक महान आयोजन है। यह आयोजन भारत की सांस्कृतिक,परंपराओं और आध्यात्मिकता को दर्शाता है,जो इस पवित्र राष्ट्र के निहित लक्षण हैं।उन्होंने कहा कि अध्यात्मवाद और राष्ट्रवाद इस देश की दो आंखें हैं जैसा कि श्री मुथुरामलिंगा थेवर ने कहा है।विश्व हिंदू परिषद इस आयोजन को राष्ट्र का गौरव मानती है, क्योंकि इसने इस राष्ट्र की ऐतिहासिक, पवित्र संस्कृति और परंपरा को उजागर किया है,किन्तु कुछ राष्ट्र विरोधी और हिंदू विरोधी ताकतों द्वारा राजनीतिक लाभ के लिए इस घटना का राजनीतिकरण करने का प्रयास किया गया है,जो कि निंदनीय हैं।विश्व हिंदू परिषद इस अध्यात्मवाद और राष्ट्रवाद के संदेश को आने वाले दिनों में पूरे देश में ले जाया जाएगा,जबकि विहिप अपने स्थापना के 60वें वर्ष में प्रवेश कर रही है।वह समय भारत के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण कहा जाता रहेगा जब हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा संसद भवन को राष्ट्र को समर्पित किया गया। उन्होंने आयोजन की महान ऐतिहासिक परम्पराओं को दर्शाते हुए कहा कि यह समर्पण कार्यक्रम तमिझागम के 21 अधीमों द्वारा सेंगोल को सौंपे जाने से किया गया था। अधीनम शैव सिद्धांतम मठों के प्रमुख हैं जिनकी स्थापना 1000 साल पहले पूरे तमिलनाडु में शिव मंदिरों और धर्मग्रंथों के प्रचार और सुरक्षा के लिए की गई थी। सेंगोल,एक राजा के धर्मी शासन,उसके राज्य के न्यायपूर्ण शासन और उसके लोगों के कल्याण का प्रतीक है और विभिन्न तमिल साहित्य में इसे सुशासन के सबसे महत्वपूर्ण लेख के रूप में दर्शाया गया है। आम तौर पर एक संत सेंगोल को राज्य के नए शासक को सौंपते हैं,पवित्र भजनों के साथ आशीर्वाद देते हैं और उनसे तमिल में "सेंगोल वझुवमल अतची पुरिया वेंडुम" कहते हैं,जिसका अर्थ है,"सेंगोल को गिराए बिना राज्य पर शासन करना"यदि उसका शासन धर्मी नहीं है, तो सेंगोल उसके हाथों से गिर जाएगा।परांडे ने कहा कि वही सेंगोल जो आज हमारे प्रधानमंत्री को भेंट किया गया है,उसका पहली बार 15 अगस्त 1947 को अनावरण किया गया था। अंग्रेजों ने भारतीय परंपरा के अनुसार शासन सौंपने की प्रक्रिया के बारे में पंडित जवाहरलाल नेहरू से पूछा था,और उन्होंने बदले में श्री राजाजी से पूछा,जो तमिल साहित्य से अच्छी तरह परिचित थे और वो जानते थे की सेंगोल सदियों से धर्मी शासन का प्रतीक रहा है,उन्होंने तिरुवदुथुराई अधीनम से इसे एक बार फिर बनाने का अनुरोध किया,और तब इसे चेन्नई के ज्वैलर वुम्मूदी बंगारूचेट्टी द्वारा बनाया गया था और 15 अगस्त को नई दिल्ली भेजा गया था। थिरुवदुथुराई अधीनम के प्रमुख कुमारस्वामी थम्बिरन ने तब सेंगोल को सौंपा था,जो उन्होंने माउंटबेटन से जवाहरलाल नेहरू को साम्राज्य सौंपने के संकेत के रूप में प्रदान किया था।

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