ग्रामीण क्षेत्रों में जन्म लेना-हमारा गौरव नहीं है। ग्रामीण गोरव को कैसा लुटा जाए रहा एक उदाहरण


डॉ.उमेशचंद्र शर्मा (प्रधान संपादक)
निरंजन भारद्वाज (संपादक)

शंकर राठौर की रिपोर्ट
कानवन-बदनावर विधानसभा क्षैत्र के लिए वर्षों से एक ज्वलन्त मुद्दा स्वास्थ विभाग को घर लेकर छाया रहा इस की कथा व्यथा लिखना हमारा मिडिया वालों का  परन्तु लोकतंत्र में राजनैताओ ने बदनावर विधानसभा क्षैत्र के एक तथा पांच सामुदायिक केंद्र व कानवन,नागदा,मुलथान,बखतगढ़,कैसुर काछीब तंत्र आम आम कह बहुतबहडोदा,बिडवा घरल में संसाधन डाक्टर,नर्स,मेडिसिन लेब टेक्नीशियन आदि कि कमियां दर्शाई जाती है।कमियों के लेकर ग्रामीण जन द्वारा जिला चिकित्सा अधिकारी डॉ पनीका से बात करने पर बताया जाता कि हमारी व्यवस्था ठीक चल रही है।परन्तु लोकतंत्र में शासन के स्वास्थ्य विभाग की करता चल रही है।कन्हैयालाल टायर पंचर दुकान चलाने वाला श्रमिक अपनी सहभागी पत्नी के मामूली सी मौसम बिमारियों के चलते प्राइवेट हास्पिटल ले गए डॉ ने लेब जांच करवाई जांच चार्ज दिया जांच चैक कर डॉ ने धार जाने का बोला मुसीबत में गिरा कन्हैलाल मरे बिचारा क्या करें दोस्त को साथ लेकर सरकारी दवाखाने पहूचे डॉ लोग से मिले फिर जांच आगे आड़े आई डाक्टर ने देखा फिर जिला अस्पताल धार भेजा इस टेबल से उस टेबल पर दोड लगाई फिर जांच आगे आडे़ आ गई फिर भी इलाज को लेकर बात नहीं बनी सारी जांचें बताई तो डाक्टर कि छुट्टी आगे आ गई अब  कन्हैयालाल पाटीदार दवाखाना धार पहुंचे फिर जांच आगे आड़े आ गई बिना इलाज घर आये और अपनी राम कहानी बताई  जांच जांच में दो पैसे की गोली भी डाक्टर दे देता मन में नहीं लगती फोकट में 1500/2000 हजार चले गए।केसी लोकतंत्र में स्वास्थ विभाग की कैसी व्यवस्था के चलते अपना गौरव बचाने के लोकतंत्र की इस दुकानदारी में दो पैसे की गोली भी नहीं मिली।ग्रामीण क्षेत्रों के लोगों लुटने से बचाने के लिए ग्रामीण तंत्र कि और वर्तमान देना होगा। देश के नागरिकों को इतना भी गोरव नहीं है कि मुल्य कागजों में चला जाए बिमारियों बिना इलाज घर चले आ जाए।विज्ञान और टेक्नोलॉजी के प्रर्दशन ने देश को किया बीमार

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