हरतालिका तीज पर हुई आस्था की गहन अभिव्यक्ति,पूजा विधान के साथ जारी रहा शिवालयों में दर्शन का सिलसिला


डॉ.उमेशचंद्र शर्मा(प्रधान संपादक)
निरंजन भारद्वाज(संपादक)


झाबुआ/मध्यप्रदेश [अरण्यपथ न्यूज़ नेटवर्क] भाद्रपद शुक्ल पक्ष तृतीया,हरतालिका तीज के पावन पर्व पर मंगलवार को झाबुआ सहित सम्पूर्ण जिले में सनातन धर्मावलंबी सौभाग्यवती महिलाओं एवं कुमारियों द्वारा बालू रेती से निर्मित शिव पार्वती गणेश की पूजा अर्चना कर उपवास रखा गया।जिले में विभिन्न स्थानों पर कर्मकांडी ब्राह्मण पंडितों द्वारा बालू रेती से भगवान् शिव देवी पार्वती एवं भगवान् गणपति की स्थापना की गई,ओर विधिपूर्वक पूजन सम्पन्न कराई गई। पंडितगणों द्वारा परम्परागत रूप से इस तिथि पर बालू की प्रतिमाएं बना कर विधिपूर्वक पूजन कराई जाती है,तथा विभिन्न वनस्पतियों के पर्ण ओर पुष्प अर्पित कराए जाते हैं।इसके उपरान्त हरितालिका तीज की वह कथा भी श्रवण कराई जाती है, जो माता पार्वती जी के जीवन में घटित हुई थी। इस कथा में देवी पार्वती के त्याग,संयम,धैर्य तथा एकनिष्ठ पातिव्रत धर्म पर प्रकाश डाला गया है। इस कथा के श्रवण से व्रती महिलाओं का मनोबल ऊंचा उठता है। 

कथा श्रवण कराई गई,जिले के थान्दला में पंडित बालमुकुंद आचार्य एवं पंडित सुरेन्द्र आचार्य द्वारा पूजन विधि सम्पन्न कराई गई।तत् पश्चात् हरतालिका तीज की कथा श्रवण कराई गई।सौभाग्यवती महिलाओं एवं कुमारियों द्वारा उपवास रखकर भगवान् शिव सहित दैवी पार्वती एवं गणेशजी की समवेत रूप में पूजा आराधना का क्रम जो कि ब्रह्म मुहूर्त में आरम्भ हुआ था, वह देर रात तक जारी रहा। अन्तिम पूजा मध्य रात्रि में की गई। इस अवसर पर जिले के शिव मंदिरों में भी महिलाओं द्वारा दर्शन एवं पूजन का क्रम जारी रहा। कुछ स्थानों पर महिलाओं द्वारा अपने घरों में ही बालू रेत से शिव पार्वती एवं गणेशजी की प्रतीकात्मक रूप से स्थापना कर पूजा अर्चना की गई। इस तरह पूजा आराधना का क्रम जो कि आज बड़े सबेरे से ही आरम्भ हुआ था, वह मध्य रात्रि तक जारी रहा। व्रती महिलाओं के अनुसार मध्यरात्रि में पूजा आरती के पश्चात रातभर जागरण किए जाने का विधान भी शास्त्रों में वर्णित है।किन्तु अधिकतर महिलाएं मध्यरात्रि में होने वाली पूजा अर्चना एवं आरती होने तक ही जागरण करती है।भारतीय संस्कृति की इस महत्वपूर्ण धार्मिक पर्व हरतालिका तीज के मौके पर एक ओर जहां विद्वान कर्मकांडियों के निर्देशन में महिलाओं ने पूजा अर्चना की,वहीं दूसरी ओर शिवालयों में दर्शन कर अपने व्रत को पूर्णता प्रदान की।इस अवसर पर जिले के शिव मंदिरों में आज महिलाओं द्वारा दर्शन का सिलसिला दोपहर तक जारी रहा।जिला मुख्यालय से करीब ५ किलोमीटर की दूरी पर स्थित दैवझरी के प्राचीन शिव मंदिर एवं राजबाड़ा चौक पर शिवालय,पेटलावद जनपद के अन्तर्गत आने वाले श्री श्रृगेश्वर ऋषि की तपोभूमि श्रृगेश्वरधाम,पेटलावद एवं थान्दला में अहिल्याबाई होल्कर द्वारा निर्मित अत्यन्त प्राचीन नीलकंठेश्वर महादेव मंदिर एवं काशी विश्वनाथ मंदिर,गणेश मंदिर, सांवरिया सेठ मंदिर,बावड़ी मंदिर,सहित जिले के विभिन्न स्थानों पर शिवालयों में आज प्रातः काल से ही महिलाओं द्वारा दर्शन का दौर शुरू हो गया था, जो दोपहर तक जारी रहा।हमारे धर्म शास्त्रों के अनुसार देवी पार्वती ने भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष तृतीया तिथि और हस्त नक्षत्र में भगवान् शिव की आराधना की थी, इसीलिए इस तिथि को यह व्रत किया जाता है।ओर तभी से इस तिथि पर स्त्रियों द्वारा अपने पति की दीर्घायु के लिए तथा कुमारी कन्याएं अपने मनोवांछित वर की प्राप्ति के लिए हरितालिका तीज का व्रत करती चली आ रही है। कहा गया है कि इस व्रत के विधिपूर्वक अनुष्ठान से स्त्री को अखंड सौभाग्य एवं कुमारिकाओं को उत्तम वर की प्राप्ति होती है। 



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